‘वाणी प्रकाशन ग्रुप’ ने भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट के साथ विश्व प्रसिद्ध प्रकाशनों का एकाधिकारिक प्रकाशन अधिकारों के लिए करार किया है।
वाणी प्रकाशन ग्रुप डिजिटल तकनीक के साथ ज्ञानपीठ की गौरवशाली परम्परा को भविष्य की ओर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध।
भारतीय व अन्तरराष्ट्रीय भाषाओं के प्रकाशनों तथा हिन्दी व अंग्रेज़ी भाषा के प्रमुख प्रकाशन गृह ‘वाणी प्रकाशन ग्रुप’ ने प्रतिष्ठित ‘भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट’ के साथ भारतीय ज्ञानपीठ के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशनों का एकाधिकारिक प्रकाशन अधिकारों के लिए करार किया है।
हिन्दी व भारतीय भाषाओं की पुस्तकों और पत्रिकाओं को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह ‘वाणी प्रकाशन ग्रुप’ ने दुनिया भर में समृद्ध और प्रतिष्ठित साहित्य, भारतीय व विश्व व्यापी हिन्दी/अंग्रेज़ी पाठकों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पुस्तकों को विशेष रूप से प्रकाशित करने की ज़िम्मेदारी ली है।
वाणी प्रकाशन ग्रुप की स्थापना छह दशक पूर्व हिन्दी साहित्य के प्रसार-प्रचार के लिए की गयी थी, उस समय अंग्रेज़ी भाषा बौद्धिक व लोकप्रिय रूप से प्रसिद्ध थी। वाणी प्रकाशन ने इस भाषाई असन्तुलन को समाप्त करने की न सिर्फ़ कोशिश की बल्कि अपनी मुहिम में प्रचुर सफलता भी प्राप्त की। ’70 के दशक के उपरान्त हिन्दी साहित्य के इतिहास में वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का जनभाषा हिन्दी को लोकप्रिय और समृद्ध बनाने में उत्कृष्ट योगदान माना जाता है।
प्रबन्ध निदेशक व ग्रुप चेयरमैन अरुण माहेश्वरी के नेतृत्व में प्रकाशित पुस्तकों को भारत व विश्व के सभी प्रतिष्ठित से सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। जिसमें पूर्व राष्ट्रपति श्री डॉ. प्रणब मुखर्जी द्वारा वर्ष 2016 में ‘स्वर्ण कमल’ पुरस्कार और ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड का ‘बिज़नेस एक्सीलेंस अवार्ड’ शामिल हैं। अरुण माहेश्वरी भारतीय भाषाओं में साहित्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिष्ठित संस्था ‘साहित्य अकादेमी’ के निर्वाचित सदस्य भी रहे हैं। उन्हें एक विशिष्ट प्रकाशक होने के नाते ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन बुकसेलर्स एंड पब्लिशर्स’ द्वारा ‘डिस्टिंग्विश्ड पब्लिशर्स अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया है।
अरुण माहेश्वरी ने इस क्षण को चिह्नित करते हुए कहा, “भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट के प्रकाशनों की ज़िम्मेदारी वास्तव में गहन सम्मान का विषय है। भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की नींव सन 1943 से ज्ञान की विलुप्त शाखाओं को प्रकाशित करने व भारतीय भाषाओं में साहित्य को सम्मानित करने के लिए समर्पित रही है। भारतीय ज्ञानपीठ की गरिमा और प्रतिष्ठा अविरल और विश्वव्यापी है।” अरुण माहेश्वरी ने कहा कि यह सुनिश्चित करना हमारी निजी योजना और नेतृत्व का हिस्सा रहा है कि प्रत्येक भाषा के साहित्य को वह ख्याति प्राप्त हो जिसकी वह हकदार हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के गौरवशाली इतिहास के साथ जुड़ कर वाणी प्रकाशन ग्रुप गौरवान्वित और उत्साहित है।
भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट का मानना है कि, “सन 1943 में स्थापना के बाद से ही ज्ञान के संवर्द्धन उद्देश्यों की पूर्ति के प्रति समर्पित भाव से कार्य करता आ रहा है। ट्रस्ट का शोध और प्रकाशन कार्यक्रम उत्कृष्टता के पुनरुत्थान के साथ प्रारम्भ हुआ, इस कार्यभार को वाणी प्रकाशन ग्रुप के साथ आगे बढ़ते हुए हम गर्व और ज़िम्मेदारी की भावनाओं का अनुभव कर रहे हैं।”
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतवर्ष के सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मानों में से माना जाता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार स्थापित करने का विचार ट्रस्ट के संस्थापक साहू शान्ति प्रसाद जैन तत्पश्चात श्रीमती रमा जैन ने रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन और लक्ष्मी चंद्र जैन सहित प्रमुख साहित्यिक स्वरों के साथ मिलकर बनाया था। पहला पुरस्कार सन 1965 में जी॰ शंकर कुरुप (मलयालम भाषा) को प्रदान किया गया था। तब से अब तक यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारतीय भाषाओं के लेखकों को प्रदान किया जाता है।
प्रसन्नता का विषय है कि 2021 का प्रतिष्ठित केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार वाणी प्रकाशन ग्रुप के ही लेखक श्री दया प्रकाश सिन्हा को ‘नाटक’ विधा में नये वर्ष की पूर्व सन्ध्या पर घोषित किया गया है।