Vice President releases the book ‘Bhoomi Suposhan’ focusing on soil health and soil nutrition

New EDelhi: Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu today underlined the importance of organic farming for sustainable and stable development.  He said that natural resources such as soil and water are not unlimited and the future of mankind depends on their conservation.

Addressing a gathering after releasing the book titled ‘Bhumi Suposhan’ (meaning – soil nutrition) published by Akshay Krishi Parivar at Upa-Rashtrapati Nivas today, the Vice President expressed his concern over the degradation of soil due to the overuse of pesticides and fertilizers and stressed the need for creating awareness on this important issue. He also said that unchecked extraction of ground water is fast depleting our groundwater table leading to a reduction in moisture content in the soil, thus turning fertile land into barren land.

Listing out various benefits of organic farming, the Vice President opined that it not only improves soil health but also reduces farmers’ input costs. Locally available resources such as cow dung and waste organic matter can be used to prepare low-cost organic manure, thus increasing farmers’ income, he added.

Acknowledging Green Revolution’s role in ensuring the country’s food security, Shri Naidu highlighted some of its unintended consequences such as the uncontrolled use of pesticides. Appreciating various governmental and individual efforts for soil conservation, he said the network of laboratories for soil testing is being strengthened and natural farming is being promoted in ecologically sensitive areas such as villages adjacent to the river Ganga.

Mentioning that around six lakh farmers are practicing organic farming on approximately 43 lakh hectares of land in India, the Vice President expressed his happiness over the fact that many hilly states successfully adopted organic farming. He said that the smaller states have shown that organic farming is particularly beneficial to our small and marginal farmers. He said that there is a growing awareness among the masses about the harmful effects of chemical farming and they are willing to pay for organic products.

Shri Naidu also stressed the need for the popularization of traditional farming practices. He wanted agricultural universities to focus more on organic and natural farming and promote innovation and agri-entrepreneurship among the youth. The Vice President said agriculture is not just farmers’ concern, rather all of us are equal stakeholders in its development as food is a basic necessity for everyone. He urged parliamentarians, political parties and policy makers to give priority to agriculture.

Shri Naidu urged people, particularly youngsters, to consume traditional foods that are nutritious and suitable to Indian conditions.

Praising Akshya Krishi Parivar for bringing out ‘Bhumi Suposhan’ – a commemorative publication of the Nationwide Bhumi Suposhan and Samrakshan Abhiyan, the Vice President wanted this book to be translated into Indian languages so that it could reach the maximum number of farmers. He also asked scientists and researchers to translate their works in people’s languages for the larger benefit of the public. Shri Naidu also stressed that early education should be in the child’s mother tongue. Similarly, local language should be used in administration and courts.

Shri Narendra Singh Tomar, Union Minister for Agriculture and Farmers Welfare, Shree Kadsiddheshwar Swamiji, Kaneri Math, Maharashtra, Shri Bhagaiah, Member of the National Executive and Ex Sah-Sarkaryawah, Rashriya Swayamsevak Sangh, Shri Manoj Solanki, President, Akshay Krishi Parivar, Dr GR Chintala Govindarajulu, NABARD Chairman, Scientists, Agriculturists and other dignitaries were present.

Followings is the full text of speech –

“भूमि सुपोषण “, राष्ट्र व्यापी भूमि सुपोषण और संरक्षण अभियान के अनुभवों पर आधारित इस संकलन का लोकार्पण करने का सुअवसर मिला है। मुझे हार्दिक प्रसन्नता है।  कृषि और ग्रामीण विकास के विषय वैसे भी स्वाभाविक रूप से मुझे प्रिय हैं।

विगत वर्ष, 2021 में, भूमि के स्वास्थ्य और पोषण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए किया गया, आपका यह अभियान, सर्वथा अभिनंदनीय है। मुझे यह जानकर विशेष संतोष है कि आपके इस अभियान में तैतीस (33) राष्ट्रीय संगठन भी जुड़े। आपने, देश के  बीस (20) राज्यों में लगभग अठारह हजार (18000) स्थानों तक पहुंच कर, वहां इस महत्वपूर्ण विषय पर जागरूकता पैदा की। राष्ट्रहित में आपके प्रयास सफल हों, मेरी हार्दिक शुभकामना है।

मित्रों,

भारतीय परंपरा में धरती को माता का स्थान दिया गया है। अथर्व वेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया है ” माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथ्व्या:”,  जो आपके अभियान का आदर्श वाक्य भी है। अर्थात्, भूमि मेरी माता है, मैं पृथ्वी का पुत्र हूं।

हमारे राष्ट्रीय गीत में भी “वंदे मातरम् ” के रूप में धरती माता की वंदना की गई है।  उसे ” सुजलाम सुफलाम” अर्थात पावन जल और फल प्रदान करने वाली कहा गया है।

ऐसी धरती की संतान के रूप में, हम उसके स्वास्थ्य, उसके पोषण को कैसे नजरंदाज कर सकते हैं? कृत्रिम रसायन डाल कर,  सालों तक उसका दोहन और शोषण कैसे कर सकते हैं! माता के प्रति यह निष्ठुरता, हमारे सनातन संस्कारों के विरुद्ध है।

मित्रों,

मानव समाज का निर्माण, कृषि के विकास के साथ जुड़ा है । हमारे पर्व, त्योहार, संस्कृति, संस्कार, सभी सदियों तक कृषि केंद्रित रहे हैं। भारतीय शास्त्रों में कहा गया है ” जीव जीवनम् कृषि:”, अर्थात जीव का जीवन ही कृषि पर आधारित है।

कृषि, हमारी संस्कृति, प्रकृति से अलग नहीं हो सकती।

भारतीय परंपरा में कृषि और ग्रामीण व्यवस्था के ऊपर प्रामाणिक ग्रंथ प्राप्त होते हैं , जैसे : पाराशर कृत कृषि पराशर, पाराशर तंत्र, सुरपाल कृत वृक्षायुर्वेद, मलयालम में परशुराम कृत कृषि गीता, सारंगधर की लिखी उपवनविनोद आदि।

मैं अपेक्षा करता हूं कि कृषि शोध संस्थान, प्राकृतिक कृषि के लिए इन ग्रंथों का अध्ययन अवश्य करेंगे और किसानों को हमारी प्राचीन पद्धतियों से परिचित कराएंगे। कृषि विश्विद्यालय जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को अपने पाठ्यक्रमों में शामिल करें और कृषि के क्षेत्र में इनोवेशन और उद्यमिता को प्रोत्साहित करें। सतत और स्थायी विकास के लिए, प्राकृतिक कृषि जरूरी है।

मित्रों,

यह समझना होगा कि प्राकृतिक स्रोत जैसे जल, मिट्टी, भूमि अक्षय नहीं हैं, न ही इन्हें फिर से बनाया जा सकता है। मानव का भाग्य और भविष्य इन प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर ही निर्भर है।

वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार  देश के अधिकांश राज्यों में अधिकांश भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। देश के एक बड़े भाग में, विशेषकर पश्चिमी और दक्कन के क्षेत्र में मिट्टी सूख कर रेतीली बन रही है। फसलों की सिंचाई के लिए भूजल का निर्बाध दोहन हो रहा है।भूजल का स्तर नीचे आ गया है और  मिट्टी की नमी कम हो गई है जिससे उसके जैविक अवयव समाप्त हो रहे हैं। नमी और सूक्ष्म जैविक पदार्थों की कमी के कारण मिट्टी रेत में बदल रही है।

कृषि में रसायनों के प्रयोग से भूमि पर दुष्प्रभाव, एक वैश्विक समस्या है। एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में अगले बीस (20) वर्षों में अनाज की पैदावार चालीस प्रतिशत( 40%) कम हो चुकी होगी और आबादी लगभग 10 बिलियन तक बढ़ चुकी होगी। भारत भी इस आपदा से अछूता न रहेगा।

इसलिए आवश्यक है कि भूमि के स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाय, उसे पुनः स्वस्थ बनाया जाय। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के सघन प्रयोग से मिट्टी विषाक्त हो जाती है। उसके अंदर के उपजाऊ जैविक तत्व समाप्त हो जाते हैं।

मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए,  प्राकृतिक जैविक खेती आशा की नई किरण है। पारंपरिक ज्ञान के आधार पर स्थानीय संसाधनों, जैसे गोबर, गौ मूत्र आदि  की सहायता से न केवल कृषि की बढ़ती लागत को कम किया जा सकता है बल्कि भूमि की जैविक  संरचना को बचाया जा सकता है।  देशी खाद और कीटनाशक, पारंपरिक पद्धति से कम लागत में ही बनाए जाते हैं। जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।

यद्यपि एक कालखंड में, देश की खाद्य सुरक्षा में हरित क्रांति का अवश्य महत्वपूर्ण योगदान रहा है लेकिन इससे भूमि क्षरण भी बढ़ा है और किसानों की लागत भी। सरकारी अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 15 टन से अधिक मिट्टी नष्ट हो रही है। यह गंभीर चिंता का विषय है।

समय के साथ, भूमि की पैदावार को बढ़ाने के लिए रसायनिक खादों, कीटनाशकों आदि की खपत बढ़ती गई है। विगत दशकों में उर्वरक की खपत अस्सी ( 80) गुना और कीटनाशकों का प्रयोग छ: (6) गुना बढ़ा है।  जिससे  कृषि, भूमि क्षरण के दुष्चक्र में फंस गई है और किसान कर्ज़ के। हमारा दायित्व है कि अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ हम धरती माता का भी स्वास्थ्य सुनिश्चित करें। उसकी जैविक उर्वरता बनाए रखें।

प्राकृतिक जैविक खेती ही इसका समाधान देती है। यह संतोष का विषय है कि मिट्टी के स्वास्थ्य को बचाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर, आप जैसी संस्थाओं द्वारा गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।

सरकार द्वारा मिट्टी के स्वास्थ्य  को बारह (12) पैमानों पर मापने के लिए, SOIL HEALTH CARDS व्यापक पैमाने पर प्रचलित किए गए हैं। मिट्टी की जांच के लिए  प्रयोगशालाओं का नेटवर्क का निरंतर विस्तार किया जा रहा है।

इस वर्ष के बजट में गंगा नदी के किनारों पर रासायनिक खेती के स्थान पर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने का प्रावधान किया गया है।

जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए, पारंपरिक कृषि विकास योजना के तहत Zero Budget Natural Farming, वैदिक कृषि, ऋषि कृषि, गौ कृषि आदि को अपनाया जा रहा है।

जागरूकता बढ़ने के साथ देश, रासायनिक खेती की हानियों और जैविक खाद्यान्न और फलों के लाभ के प्रति जागरूक हो रहा है। विश्व भर में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। भारत में स्थानीय परिवेश और ऋतुओं के अनुसार  अनाजों और आहारों की समृद्ध परंपरा रही है। जिसे हम आधुनिकता के प्रभाव में धीरे धीरे भूलते जा रहे हैं। मेरा सदैव मानना रहा है कि हम अपनी प्राचीन खाद्यान्न परंपरा को जीवित करें।

मुझे ज्ञात हुआ है कि देश में लगभग तैंतालीस (43) लाख हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है जिसमें लगभग  छ: (6) लाख किसान जुड़े हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में जैविक खेती का क्षेत्रफल सर्वाधिक है। तथापि मुझे विशेष संतोष है कि  हमारे देश के पर्वतीय प्रांतों जहां खेती योग्य भूमि कम है और जोत का आकार भी छोटा होता है, वहां जैविक खेती को किसानों ने सफलतापूर्वक अपनाया है। इससे साबित होता है कि  छोटे और सीमांत किसानों के लिए जैविक प्राकृतिक खेती विशेष लाभकारी है। हमारे देश में छोटे और सीमांत किसान ही बहुसंख्यक  (85%) हैं। जैविक खेती अपना कर वे अपनी लागत कम रख सकते हैं, इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी।

प्रायः किसानों को जैविक प्राकृतिक कृषि को ले कर शंका रहती है कि इससे पैदावार कम हो जायेगी।  मुझे विश्वास है कि आपकी यह पुस्तक, किसानों की शंका के निवारण करने के लिए प्रामाणिक उपयोगी जानकारी प्रदान करेगी। मैं अपेक्षा करूंगा कि इसके व्यापक प्रचार के लिए, इसका अनुवाद हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में कराया जाय। जिससे आम किसान इसका लाभ उठा सके।

मित्रों,

कृषि हमारी समृद्धि और सम्मान का प्रतीक है। ऋग्वेद में कहा गया है :

“कृषिमित कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमान:”

कृषि करो और सम्मान के साथ धन अर्जित करो

मुझे विश्वास है कि प्राकृतिक खेती  न सिर्फ हमारे किसानों के जीवन में समृद्धि लाएगी बल्कि धरती माता को सम्मान और स्वास्थ्य भी प्रदान करेगी।

इस पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, भूमि सुपोषण एवं संरक्षण अभियान से जुड़े सभी लोगों का अभिनंदन करता हूं और इस अभियान की सफलता की कामना करता हूं।

जय हिन्द।