Swami Dayanand Saraswati’s vision finds resonance in Beti Bachao Beti Padhao and New Education Policy, says the Vice President
Swami Dayanand Saraswati’s vision and action for combating social evils continue to remain relevant to this day, and find resonance in Government initiatives such as Beti Bachao Beti Padhao and the New Education Policy. This was highlighted by the Vice President, Shri Jagdeep Dhankhar during the release of a commemorative postage stamp on the 200th birth anniversary of Swami Dayanand Saraswati, in New Delhi today. He noted the dedicated efforts of Swami Dayanand ji for the eradication of social evils like untouchability, and towards the empowerment of women through education, that continue to form the foundation of social welfare in Independent India.
The Vice President paid tribute to Swami Dayanand’s contributions as a thinker-philosopher of modern India, and as the founder of the Arya Samaj. During colonial rule, when India had lost its spiritual and cultural moorings, Swami Dayanand Saraswati reinfused Vedic wisdom with a rational outlook to revitalize India’s civilizational ethos, he said.
Shri Dhankhar recalled that Swami Dayanand Saraswati was the first to give the clarion call for Swaraj, which was amplified by Lokmanya Tilak and went on to become a Jan Andolan. Independence, for Swami ji, was not detached from true independence of the mind and spirit, Shri Dhankhar highlighted.
The Vice President said that it is painful to see some people going abroad and trying to malign their own country from there. He stated that a true believer of Bharat & Bharteeyata would always think of his or her country first and contribute to nation’s reform process; rather than making unfounded comments on our institutions from foreign soil.
Shri Dhankhar underlined Swami Dayanad’s contribution towards ensuring that languages like Sanskrit and Hindi get their deserved recognition. “There is no language in the world and no grammar which has the depth that Sanskrit is possessed of. It is like the mother of all languages,” he noted, calling on citizens to never forget their roots.
The postage stamp release program was organised by the Satya Foundation in collaboration with the Ministry of Communications & IT, and Ministry of Culture.
Shri Devusinh Chauhan, Hon’ble Minister of State for Communication, Dr. Satya Pal Singh, Member of Parliament (Lok Sabha), Swami Sumedhanand Saraswati, Member of Parliament (Lok Sabha), Swami Ramdev, Patanjali Yogpeeth, Haridwar, Swami Chidanand Saraswati, Parmarth Niketan, Hrishikesh and other senior officials from the Ministry of Communication were also present on the occasion.
Following is the full text of speech –
सबको मेरा सादर प्रणाम।
आज का यह कार्यक्रम बदलते हुए भारत की एक तस्वीर प्रस्तुत करता है। एक समय था.. एक कालखंड था, जब लगता था हमारे यहां महापुरुष है ही नहीं और नामककरण जो होता था संस्थाओं का बहुत सीमित हो गया था… उसमें जो खुलापन आ रहा है, भारत के इतिहास को पूरी तरह से दर्शाया जा रहा है। यह बहुत ही सुखद परिवर्तन हो रहा है।
भारत सरकार में राज्यमंत्री श्री देवसिंह सिंह चौहान जी! बहुत ही सरल व्यक्तित्व के धनी हैं। अपने क्षेत्र के प्रति पूरी तरह समर्पित।
पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से आदरणीय स्वामी रामदेव जी किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है। कहते है नाम में क्या रखा है? रखा है, राम भी है और देव भी है। समय के साथ हम कुछ चीजें भूल जाते हैं… करोड़ों की जनता इस बात को याद रखती है वह समय देश के हर कोने में in every weather condition … हर वर्ग के लोग योग सीखने आते थे! स्वामी रामदेव जी, पॉजिटिव कोविड हैं योग के लिए। इन्होने योग के प्रचार में जो पुरुषार्थ किया है उसका नतीजा यह हुआ की यूनाइटेड नेशंस में भारत के ओजस्वी प्रधानमंत्री का प्रस्ताव भारी बहुमत से स्वीकार हुआ। योग कैसे किया जाए और देश और दुनिया में प्रसारित होता है। योग दिवस अब किसी का नहीं रहा, भारत की पहचान है और पूरी दुनिया में मनाया जाता है।
सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह जी.. मुझे वह दिन याद जब 1980 के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पूना चले जाओ नासिक चले जाओ, नागपुर चले जाओ और मुंबई चले जाओ एक ही बात कहते थे ….ऐसा पुलिस कमिश्नर देखा नहीं। इतना बड़ा करियर और एक बयान जारी कर दिया…अब तक महाराष्ट्र की सेवा करता था, अब राष्ट्र के अंदर एक कार्यकर्ता के रूप में सेवा करना चाहता हूं। बागपत में जो परिवर्तन किया है और जिस गहराई से किया है उससे अंदाजा लग सकता है कि इन कमिश्नर साहब ने नासिक, पुणे, नागपुर और मुंबई को कैसे मैनेज किया होगा। और इनकी धर्मपत्नी अलका जी का समर्थन इतना ज़यादा है इसकी यह जानकारी मुझे तब हुई जब मैंने दोनों को राजभवन कोलकाता बुलाया जब मैं राज्यपाल था और अलका जी ने वह कहावत चरितार्थ कर दी … हर सक्सेसफुल आदमी के पीछे एक औरत होती है.. कार्यक्रम में भी अलका जी का योगदान अभिनंदन योग्य है।
सांसद स्वामी सुमेधानंद जी, एक कहावत है और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने भी कही थी You can’t choose your neighbours you have to live with your neighbours. मेरा परम सौभग्य रहा है की मै झुंझुनू से सांसद था और वह मेरी जन्म भूमि है, और सुमेधानंद जी सीकर से सांसद हैं। मैं इनको उस कहावत के विपरीत मानता हूं, he is a neighbour I would love to have.
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश से स्वामी चिदानंद सरस्वती .. he has magnetic personality. I am greatly touched by his thought process.
श्री आलोक शर्मा जी और श्री सुनील कुमार गुप्ता जी व संचार विभाग के अन्य अधिकारीगण और सबसे महत्वपूर्ण आर्य समाज के प्रतिनिधिगण… पूरी कड़ी में मैंने मेरी धर्मपत्नी डॉक्टर सुदेश धनखड़ को भूला नहीं, मेरी शादी आर्य समाज पद्धति से हुई है।
महर्षि दयानंद सरस्वती की २०० जयंती के उपलक्ष्य में स्मारक डाक टिकट का विमोचन हम सब के लिए और देश के लिए गौरव का विषय है… मैं तो अभिभूत हूं। यह एक दृष्टिकोंण का और संकेत देता है आज के दिन हम अमृत काल में है। इतिहास को पढ़ते थे.. जानकारी होती थी.. यह करिश्मा बहुत कम लोगों का है.. और अब पता लगा कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम में कितने लोग थे। कितने महारथी थे… देश का कोई भूखंड नहीं है जिसमे किसी न किसी कालखंड में उस भूखंड से लोगों का योगदान न हुआ हो।
ये जो बदलाव है और इस बदलाव का डंका दुनिया के अंदर महसूस किया जा रहा है और भारत is on the rise as never before and the rise is unstoppable… आज का कार्यक्रम भी उसका ही facet है।
आज का दिन और भी महत्वपूर्ण है। 148 साल पहले स्वामी दयानंद जी ने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। दुनिया के देशों पर नजर दौड़ाई उनकी संस्कृति कहां तक है? हमारी तो हजारों साल की है we are matchless, our civilization background, ethos, are unprecedented.
प्राचीन काल से ही भारत ऋषि-मुनियों का देश रहा है भगवान के यहां कई अवतार हुए,और इस भूमि को पवित्र किया है। राम काल्पनिक नहीं… राम हमारी सभ्यता का हिस्सा हैं, कृष्ण, बुद्ध, महावीर के रूप में इस धरती का परम कल्याण किया है। अनेक महान आध्यात्मिक गुरू उच्च कोटि के संत और समाज सुधारक इस मंच पर भी विराजमान है।
नव जागरण का शंखनाद करने वाले और उस समय अंदाजा लगाइए… किस कालखंड में किया … राजा राममोहन राय, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद इन सब की भांति स्वामी दयानंद का नाम भी है महत्वपूर्ण है। स्वामी दयानंद आधुनिक भारती के चिंतक और आर्य समाज के संस्थापक थे। स्वामी जी द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है।
G 20 का logo देखिये, motto देखिये … जो स्वामीजी ने कहा वो दिखाई पड़ेगा, स्वामीजी सदैव और आज भी सब के ह्रदय में विराजमान है।
स्वामीजी मन, वचन व कर्म तीनों शक्तियों से समाज उधार के लिए प्रयत्न किया और आज वो जमीनी हकीकत है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ … जमीनी हकीकत है और समाज में उनका सकारात्मक असर है ।
स्वामी जी युग पुरुष क्यों है… मै उनके एक वचन की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं –
“स्वाधीनता मेरी आत्मा और भारतवर्ष की आवाज है मुझे यही प्रिय है। मै विदेशी साम्राज्य के लिए कभी प्रार्थना नहीं कर सकता। प्रेरणादायक है।
कुछ दर्द होता है.. कुछ पीड़ा होती है जब अपनों में से कुछ लोग विदेशी भूमि पर जाकर उभरते हुए भारत की तस्वीर को धूमिल करने का प्रयास करते हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए।
समझ में नहीं आता सच्चे मन से भारत और भारतीयता में विश्वास करने वाला व्यक्ति भारत के सुधार की सोचेगा एवं सुधार में सहयोग करने की सोचेगा… हो सकता है कमियां हों …. उन कमियों को दूर करने की सोचेगा पर विदेश में जाकर नुक्ताचीनी करना… विदेश में जाकर संस्थाओं के ऊपर घोर टिप्पणी करना हर मापदंड पर अमर्यादित है।
स्वामी जी की इस सोच के विपरीत आचरण है और स्वामी जी की सोच उस समय थी जब विदेशी ताकतें हम पर हावी थीं। यह बयान देना उनके लिए आसान नहीं था आज तो हम अमृत काल में स्वतंत्र हैं।
दुनिया ने क्या देखा… सितंबर 2022 में….. भारत विश्व की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति बना। इस उपलब्धि का अंदाजा लगाइए कि जिन लोगों ने हम पर शताब्दियों तक राज किया उनको पछाड़कर पांचवी पायदान पर आए। दुनिया के अर्थशास्त्री मानते हैं कि दशक के अंत तक हम विश्व की तीसरी महाशक्ति होंगे।
स्वामी जी ने वैदिक धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए जीवन भर प्रयास किया राज्यपाल की हैसियत से भी मैं यही कहता आया हूं कि जो वेद में है, वह संपूर्ण हैं जो वेदों में है उसकी जानकारी हम सबको होनी चाहिए।
यह चिंता का विषय है जिस पर हम सब को ध्यान देना चाहिए। कुछ लोग वेद की चर्चा करते हैं पर कभी उन्होंने वेद को देखा नहीं है.. पढ़ना तो दूर की बात है। मेरा आपसे आग्रह रहेगा कि आप सब वेद का अध्ययन करें। वेदों का ज्ञान महत्वपूर्ण है कि उसके अध्ययन से आप प्रभावित भी होंगे आपका जीवन भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होगा और आप दूसरों को प्रभावित कर भी पाएंगे।
विदेशी दासत्व से भारतीय जनमानस को मुक्त कराने हेतु स्वामी जी का प्रयास सदैव स्मरणीय रहेगा। समाज से अज्ञानता, रूढिवादिता व अंधविश्वास को मिटाने हेतु उन्होंने धर्मग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना की ।
कुछ विदेशी संस्थाएं कार्यरत हैं और वह हमको ज्ञान देते हैं कि हमारा भारत कैसा है। वह हमें हमारी जमीन के बारे में बताते हैं जिसकी जानकारी हमको है। उनका उद्देश्य है भारत की उभरती हुई गति पर अंकुश लगाना। अमेरिका में भी ऐसे संस्थान है…. हमारे उद्योगपति, अरबपति अपना योगदान देते हैं, मैं नहीं कहता कि उनकी नीयत खराब है पर शायद यह बात उनके ध्यान से उतर गई है। करोड़ों के योगदान की वजह से वहां अपने ही कुछ लोग इस प्रकार के कार्यक्रम की रचना करते हैं कि हम भारत को धूमिल कर दें। उन संस्थाओं के अंदर अनेक देशों के विद्यार्थी और अध्यापक हैं पर यह अनुचित कार्य हमारे ही कुछ लोग क्यों करते हैं किसी और देश के लोग क्यों नहीं करते हैं…. यह बड़े ही सोच और चिंतन का विषय है।
दुनिया में भारत की आवाज इतनी बुलंदी पर है आज के दिन जिसकी परिकल्पना स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी। आज विश्व के किसी भी मंच पर भारत की आवाज का मुद्दा नहीं है… मुद्दा है कि भारत की उस विषय पर क्या आवाज है और यह बहुत ही बड़ा बदलाव है।
ऐसी परिस्थिति के अंदर कोई दूसरी बात करें तो यह बहुत अटपटी सी लगती है। मैं मान कर चलता हूं हमारा इंटेलिजेंसिया और मीडिया इस पर ध्यान और अध्ययन करेगा… जनता को जागरूक करेगा ताकि उन लोगों पर अंकुश लगे।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी को अपनी मातृभाषा हिंदी से विशेष लगाव था। उन्होंने उस समय हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दिलाने हेतु पूर्ण चेष्टा की। उनके प्रयासों से हिंदी के अतिरिक्त वैदिक धर्म व संस्कृत भाषा को भी समाज में विशेष स्थान प्राप्त हुआ। दुनिया के कई देश आज संस्कृत की ओर आकर्षित हो चुके हैं और वह वहां पढ़ाई जाती है हमें इस को और बढ़ावा देना पड़ेगा। There is no language in the world and no grammar of the kind the Sanskrit possess… संस्कृत का तो कोई मुकाबला ही नहीं है… बहुत ही गहराई है… एक तरीके से अनेक भाषाओं की जननी है और हम जननी को मिटने नहीं दे सकते। We can never destroy our roots… इसकी की ओर ध्यान देना चाहिए।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ही सबसे पहले १८७६ में ‘स्वराज्य’ का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया।
स्वामी जी ने अपनी रचनाओं व उपदेशों के माध्यम से भारतीय जनमानस को मानसिक दासत्व से मुक्त कराने की पूर्ण चेष्टा की। इस अमृत कालखंड में स्वामी जी की आत्मा प्रसन्न होगी यह दासत्व विदेशी शासकों का खत्म हो चुका है।
पहले कोई काम किसी बिचौलिया के बिना नहीं हुआ करता था अब यह संस्था खत्म हो चुकी है, Today this industry of middleman is extinct… इतनी पारदर्शिता आ चुकी है… now the system is so accountable and transparent … ऐसी कल्पना कभी की नहीं थी। क्या आज के दिन कोई लाइन में खड़ा होकर बिल भरता है? नहीं भरता है। यही बदलाव है। क्या आज के दिन किसी को सरकारी cheque मिलता है यह सहायता cheque से मिलती है? नहीं… ऑनलाइन का समय है।
मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई विश्व के नेताओं को कहने में कि हमारे देश में 220 करोड़ वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट व्यक्तियों के मोबाइल पर आए हैं, दुनिया के विकसित देश भी यह हासिल नहीं कर पाए।
स्वामी दयानंद जी ने भी आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ गुरुकुलों के जरिए भारतीय परिवेश में ढली शिक्षा व्यवस्था की वकालत की थी। 34 साल के बाद देश में एक बहुत बड़ा बदलाव आया और उस बदलाव में भी मैं दयानंद सरस्वती जी की झलक देखता हूं और वह बदलाव है हमारी नई शिक्षा नीति है। मेरा यह मानना कि यह बहुत ही बड़ा क्रांतिकारी कदम है। यह नीति हमें एक स्वतंत्रता प्रदान करती है और प्रतिभा को निखरने का रास्ता दिखाती है जो पहले बने थे बंद थे we have an ecosystem today were every individuals is in capacity to fully exploit his or her talent… आप में प्रतिभा है तो आपको अवसर मिलेगा… और यह निश्चित है।
मैं अपनी वाणी को विराम देने से पूर्व स्वामी जी के कुछ वचनों की और आपका ध्यान आकर्षित करूंगा:
“जीभ से वही निकलना चाहिए जो अपने हृदय में हैं।” अब इसमें मैं एक बात जोड़ता हूं … हम भारतीय हैं, भारत की प्रतिष्ठा हमारी प्रतिष्ठा है … हमारी जीभ से सदैव भारत के लिए अच्छा निकलना चाहिए चाहे हमसे दुनिया के किसी भी कोने में जाएं।
“सेवा का उच्चतम रूप एक ऐसे व्यक्ति की मदद करना है, जो बदले में धन्यवाद देने में असमर्थ है।”
“किसी भी कार्य को करने से पहले सोचना अक्लमंदी होती है और काम को करते हुए सोचना सावधानी कहलाती है, लेकिन काम को करने के बाद सोचना मूर्खता कहलाती है।” प्रेरणा दायक है।
आपने देखा होगा कि सबका साथ सबका विकास हो सबका प्रयास हो पर अब नीति स्पष्ट है कि अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना है। यह स्वामी जी की सोच थी… यह आज हकीकत में लगातार बदलती जा रही है … बदलने का अंदाजा लगाइए आप… जो लोग बैंक के अंदर नहीं घुस सकते थे… आज 25 करोड़ से ज्यादा लोगों को उनके घर जाकर बैंक खाते खोले गए… और इसका बहुत बड़ा फायदा कोविड-19 सहायता देने के दौरान हुआ। बिना किसी बिचौलिए के साल में तीन बार.. हमारे अन्नदाता किसान को सरकारी धन मिलता है जो सीधा उसके जो कि सीधा उसके अकाउंट में जाता है… और अब तक किसानों के खातों में 2,25,000 करोड़ से ज्यादा धन पहुंच चुका है। याद कीजिए उस समय को जब कहा जाता था ₹1 देते हैं तो 85 पैसे कहां गायब हो जाते? अब ऐसा कुछ संभव ही नहीं है… यह बदलते हुए भारत की तस्वीर है।
मेरा और मेरी पत्नी का बंधन आर्य समाज की शादी से हुआ है और इस बंधन की एक खास बात है शुरुआत के अंदर तो हम बराबर रहते हैं पर धीरे-धीरे इस बंधन में नारी शक्ति का विस्तार ज्यादा हो जाता है।