Vice President M. Venkaiah Naidu addresses the International Mother Language Day Celebrations
New Delhi: Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu today observed that ‘language’ is a fundamental bond that unites people and said that the drive to protect and preserve mother tongues should become a people’s movement in the country. “If we lose our mother tongue, we will lose our identity”, he added.
Addressing an event organized by the Ministry of Earth Science on the occasion of International Mother Languages Day virtually from Chennai, the Vice President called for tailoring languages to the changing needs of our times and finding creative and innovative ways to promote them among younger generations. “Children should be encouraged to learn the nuances of language through games and activities,” he opined and also underlined the need to improve the scientific and technical terminology in Indian languages.
Describing languages as carriers of our cultural heritage, Shri Naidu said that a language is the vital, unseen thread that links the past with the present. “Our languages are thus a repository of our collective knowledge and wisdom which we have amassed over thousands of years,” he added.
Observing numerous languages thrived alongside each other over hundreds of years in India, the Vice President suggested referring to them as ‘Indian languages’ instead of ‘regional languages’ signifying their equal status and distinct identities. “These ‘Indian languages’ are the epitome of our long-cherished value – unity in diversity,” he added.
Noting that India is home to hundreds of languages and thousands of dialects, the Vice President termed this linguistic richness as key to our creativity and expression. He also expressed happiness over the fact that NEP-2020 encourages the use of mother tongue in schools and colleges and seeks to ‘Indianise’ our education system by making it holistic, value-based and inclusive. Commending this approach, he urged the states to implement the policy in letter and spirit.
The Vice President reiterated the need to offer technical courses in Indian languages to make education truly inclusive and to unlock the full potential of our youth force. Citing the example of several developed countries such as Japan, France, and Germany that impart education in their respective mother tongues, he suggested learning from their policies and strategies for preservation and promotion of mother tongue.
Shri Naidu urged the state governments to take a proactive stance in implementing Indian languages in every walk of life. “All states must use the mother tongue of the people as the language of administration and also as a medium of education,” he said.
Emphasising the importance of people’s participation in the governance in a democracy, Shri Naidu opined that this could be achieved through usage of people’s language only. He said that court proceedings should also be in Indian languages so that people could better understand the judicial process.
Stating that colonial rule has done harm to our languages, he said that after independence also, we also have not made enough efforts to do justice to our languages. Calling it a great mistake not to have resorted to usage of mother tongue, the Vice President said that it was wrong not to have shifted to mother tongues and Indian languages after the colonial rule ended. While advocating that one should learn as many languages as possible, the Vice President, however, emphasized the need to build a strong foundation in the mother tongue first. He also underlined the need to link mother tongue with jobs and livelihood.
The virtual event to celebrate International Mother Languages Day was organized by the Union Ministry of Earth Sciences. The Union Minister, Dr Jitendra Singh, Secretary, Ministry of Earth Sciences, Dr M Ravichandran, former Vice Chancellor, Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha, Prof (Dr) Girishwar Mishra, Joint Secretary, Ministry of Earth Sciences, Ms Indira Murthi and others attended the virtual event.
Following is the full text of Vice President’s speech –
“भाषा का जन्म लोगों के बीच संवाद हेतु होता है। उसकी सार्थकता इसी मैं है कि वह इस संवाद को सरल बनाए।
भाषा हमारे संस्कारों को भी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पंहुचाती है। इस प्रकार भाषा हमारे अतीत और वर्तमान के बीच का सूत्र है।
हमारी सांस्कृतिक धरोहर, हमारी मान्यताएं, मर्यादाएं भाषा में ही संरक्षित रहते हैं। हमारे साहित्य और संस्कृति का अस्तित्व, भाषा के बिना संभव ही नहीं है। इस प्रकार हमारी भाषाएं सदियों के हमारे सभ्यतागत अनुभव का खजाना होती हैं।
विश्व की असंख्य भाषाओं में, हमारी अपनी मातृभाषा का हमारे हृदय में विशेष स्थान होता है। मातृभाषा में बोला गया हर शब्द आपकी भावनाओं को दूसरों तक पहुँचा देता है।
हम अपनी मातृ भाषाओं को सुरक्षित रखें, उनका प्रयोग करते हुए गर्व करें, तभी हमारी मातृभाषा और विकसित होगी।
भारत में सैकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां रही हैं। यह भाषाई विविधता ही हमारी सनातन सभ्यता को विशिष्ट बनाती है। सदियों पुरानी इस भाषाई विविधता के बावजूद, हमारा परस्पर संपर्क और संवाद मजबूत और सौहार्दपूर्ण रहा है।
इस अवधि में हमारी भाषाओं में भी परस्पर संवाद होता रहा, शब्दों और मुहावरों का आदान प्रदान होता रहा। इससे हर भाषा समृद्ध बनी।
इसीलिए मेरा सदैव मानना रहा है कि हमारी सभी मातृ भाषाओं को “स्थानीय भाषा” न कह कर, उन्हें “भारतीय भाषा” कहा जाय। हमारी सभी मातृ भाषाएं बराबर हैं और उनमें से हरेक की अपनी मधुरता और विशेषता है।
ये भाषाएं ही भारत की “विभिन्नता में एकता” को अभिव्यक्त करती हैं।
मुझे हर्ष है कि केंद्र सरकार भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए सार्थक प्रयास कर रही है।
नई शिक्षा नीति, 2020 में, कम से कम कक्षा 5 तक, बच्चों को मातृभाषा में ही शिक्षा देने का प्रावधान है।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य ही पूरी शिक्षा प्रणाली का “भारतीयकरण” करना है। शिक्षा को समावेशी बनाना है। शिक्षा नीति में, जीवन मूल्यों और नैतिक शिक्षा दिए जाने पर बल दिया गया है। मेरा सभी राज्यों से आग्रह होगा कि वे इस शिक्षा नीति को अक्षरश: पूरी प्रतिबद्धता के साथ लागू करें।
ऋग्वेद में कहा गया है “अ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:” अर्थात् हर दिशा से अच्छे और उदार विचार हमारे पास आएं। यह श्लोक, हमारे सभ्यतागत संस्कारों में खुलेपन और स्वीकार करने की असीम क्षमता को दर्शाता है।
हम अपने पूर्वजों के इन्हीं संस्कारों का अनुकरण करें। सभी संस्कृतियों का आदर करें, उनकी भाषाओं को सीखें, उनके इतिहास, उनकी परंपराओं को जानें। हम अपनी परंपराओं का पालन करते हुए भी, अन्य संस्कृतियों को खुले मन से स्वीकार करें।
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा का माध्यम भी भारतीय भाषाओं में होना चाहिए। तभी हमारी उच्च और तकनीकी शिक्षा समावेशी बन सकेगी। तभी हम अपने युवाओं की प्रतिभा, क्षमता को अभिव्यक्त करने का मौका दे सकेंगे।
अग्रेजों ने राष्ट्र को ही गुलाम नहीं बनाया, बल्कि भारतीय भाषाओं का भी दमन किया। भारतीय संस्कारों का भी दमन किया। हर समुदाय को इस गुलामी की बड़ी कीमत अपनी परंपराओं से चुकानी पड़ी है। कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रहा। लेकिन आज़ादी के बाद भी स्थितियां बहुत नहीं बदली हैं। एक भारतीय के रूप में यह हमारी असफलता ही है कि हम अपनी मातृभाषाओं को शासन, प्रशासन और राष्ट्रीय जीवन में उचित स्थान न दिला पाए।
एक लोकतंत्र के रूप में यह जरूरी है कि शासन में आम नागरिकों की भागीदारी हो। वह तभी होगा जब शासन की भाषा उनकी अपनी मातृभाषा होगी। न्यायपालिका की भाषा अभी भी अंग्रेजी है। न्यायालयों को चाहिए कि वे अपनी कार्यवाही भारतीय भाषाओं में करें। जिससे लोग न्यायपालिका को अपना पक्ष अपनी भाषा में समझा सकें, उसके निर्णयों को पूरी तरह समझ सकें।
मुझे खुशी है कि कुछ संस्थान इस दिशा में सार्थक प्रयास कर भी रहे हैं। हमें जापान, फ्रांस, जर्मनी चीन जैसे विकसित देशों से सीखना चाहिए जहां उच्च और तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम उनकी मातृभाषा में ही उपलब्ध होते है। फिर भी वहां का अध्ययन, अनुसंधान और शोध, अंग्रेजी बोलने वाले देशों के समान ही विश्व स्तरीय रहा है।
इन देशों ने किस प्रणाली से अपनी मातृ भाषाओं को संरक्षित रखा, उसे बढ़ाया, हमें उनसे यह सीखना चाहिए और अपने लिए रणनीति तैयार करनी चाहिए।
मातृभाषा के संरक्षण के लिए एक जन अभियान जरूरी है। यह सिर्फ सरकार का ही दायित्व नहीं है। इसमें परिवार, शिक्षक, मीडिया तथा भाषाविद सभी का योगदान चाहिए।
साथ ही युवाओं में मातृ भाषाओं का प्रचलन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि भाषाएं भी बदलते समय की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप बदलें। युवाओं को सरल रोचक तरीकों से भाषा ज्ञान दिया जाना चाहिए। इस प्रकार के खेल विकसित किए जाने चाहिए।
जरूरी है कि वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली का भी आसान भारतीय भाषाओं अनुवाद किया जाय। इससे युवाओं में आधुनिक विषयों के लिए रुचि बढ़ेगी और उनके लिए भी विषय सरल और सुगम्य बनेगा।
राज्य सरकारों से उम्मीद करता हूं कि वे भारतीय भाषाओं के प्रचार प्रसार हेतु कारगर कदम उठाएंगे। न सिर्फ मातृभाषा को स्कूली शिक्षा का माध्यम बनाएंगे, बल्कि रोजमर्रा जीवन में भी मातृभाषा को बढ़ावा देगें।
मातृभाषा सीखने पर बल देने का अर्थ ये नहीं कि अंग्रेजी को न सीखा जाए। मेरा तो मानना रहा है कि यथासंभव अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए। अभिभावकों और गुरुजनों को चाहिए कि वे विद्यार्थी को मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं तथा एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित करें। लेकिन सबसे पहले मातृभाषा में शिक्षा की मजबूत नींव पड़ना आवश्यक है।
अंत में यह याद रखें कि भाषा ही लोगों के बीच संवाद का वह सूत्र है जो किसी समुदाय को बनाता है। अगर हम अपनी मातृभाषा को भूलते हैं तो हम अपनी पहचान खोते हैं, अपना आत्म सम्मान, अपना आत्मविश्वास खो देते हैं।
हम अपनी मातृभाषा में बोलने, बात करने गौरव महसूस करना चाहिए और इस अमूल्य निधि को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखना चाहिए।
धन्यवाद!
जय हिंद!”