“हमारे प्रबुद्ध समाज में भी किन्नर अभी भी उपेक्षित हैं। इस यथार्थ को लेखिका की किताब में पूरी स्पष्टता से देखा जा सकता है।” -बालेन्दु द्विवेदी
"इस पुस्तक में एक पूरा अध्याय किन्नरों के पौराणिक काल से अस्तित्व पर केंद्रित है। यह निश्चित तौर पर गूढ़ शोध से निकली हुई पुस्तक है।" -महेन्द्र भीष्म "इस किताब के हवाले से हाल के दिनों में किन्नरों पर आधारित सबसे प्रमाणिक काम हुआ है।" -अरुण सिंह "सबसे बुरी स्थिति किन्नरों के लिए यह है कि उनके लिए बनारस में भी श्मशान घाट उपलब्ध नहीं है।उन्होंने ख़ुद जमीन खरीदी दफ़्न होने के लिए।" -प्रियंका नारायण "किन्नर समुदाय की संवेदना पर सबसे विवेचनात्मक पुस्तक है यह।" -साकेत बिहारी पाण्डेय
18वाँ राष्ट्रीय पुस्तक मेला, लखनऊ में वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित लेखिका प्रियंका नारायण की पुस्तक “किन्नर : सेक्स और सामाजिक स्वीकार्यता” पर लोकार्पण व परिचर्चा का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार महेन्द्र भीष्म, चर्चित उपन्यासकार बालेन्दु द्विवेदी, उपस्थित रहे। व कार्यक्रम का कुशल संचालन साकेत बिहारी पाण्डेय द्वारा किया गया।
किताब के बारे में
भारत में किन्नरों का भी एक ‘गोल्डन एरा’ यानी कि स्वर्णकाल था। दरअसल किन्नरों को मुग़ल साम्राज्य में सबसे पहले अहमियत दी गयी थी। किन्नरों को महिलाओं के हरम की रक्षा की ज़िम्मेदारी दी जाती थी। मुग़ल साम्राज्य का मानना था कि किन्नर हमारे समाज का एक अहम हिस्सा हैं और इसलिए उन्हें इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। यह भी समझा जाता था कि महिलाओं को किन्नरों से किसी प्रकार का कोई ख़तरा नहीं था। किन्नर उनकी कई सेनाओं के जनरल भी थे तो कई रानियों के पर्सनल बॉडीगार्ड भी। भारत में किन्नरों की स्थिति यूरोप के किन्नरों से एकदम अलग थी, और है। भारत में किन्नरों का अलग मोहल्ला होता है जहाँ किन्नर एक साथ रहते हैं। किन्नर एक मामले में सबसे अलग हैं क्योंकि वे घरों में तभी आते हैं जब बेटा पैदा हो या फिर घर में नयी बहू आये। यानी कि किन्नर आपकी ख़ुशियों के साथी हैं। ग़म में कहीं दिखाई नहीं देते।
लेखक परिचय
प्रियंका नारायण जन्म : 11 सितम्बर 1991, मोतिहारी, पूर्वी चम्पारण, बिहार। शिक्षा : स्नातक, परास्नातक, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी। शोध विषय : स्वामी विवेकानन्द का दिनकर के साहित्य पर प्रभाव, विभिन्न विषयों (हिन्दी, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व एवं भूगोल में विश्वविद्यालय स्तर पर प्रथम स्थान)। अन्तर्विषयक शोध एवं लेखन में विशेष रुचि। पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग पर प्रकाशित वैदिक एवं पौराणिक ग्रन्थों तथा आधुनिक विज्ञान के अन्तःसम्बन्धों की पड़ताल पर प्रयासरत।
वाणी प्रकाशन ग्रुप के बारें में
वाणी प्रकाशन ग्रुप पिछले 59 वर्षों से साहित्य की 32 से भी अधिक नवीनतम विधाओं में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन ग्रुप ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। तथा देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। अब वाणी प्रकाशन ग्रुप वाणी डिजिटल, वाणी बिज़नेस, वाणी बुक कम्पनी, वाणी पृथ्वी, नाइन बुक्स, वाणी प्रतियोगिता, युवा वाणी और गैर-लाभकारी संस्था वाणी फ़ाउण्डेशन के साथ प्रकाशन उद्योग में लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
वाणी प्रकाशन ग्रुप भारत के प्रमुख पुस्तकालयों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन ग्रुप की सूची में, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 25 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। वाणी प्रकाशन ग्रुप को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, रशियन सेंटर ऑफ़ आर्ट एण्ड कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो-पोलिश लिटरेरी के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित करने का गौरव प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ग्रुप ने 2008 में ‘Federation of Indian Publishers Associations’ द्वारा प्रतिष्ठित ‘Distinguished Publisher Award’ भी प्राप्त किया है। सन् 2013 से 2017 तक केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के 68 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्री अरुण माहेश्वरी केन्द्रीय परिषद् की जनरल काउंसिल में देशभर के प्रकाशकों के प्रतिनिधि के रूप में चयनित किये गये।
लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को ‘वातायन सम्मान’ तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ‘एक्सीलेंस इन बिज़नेस’ सम्मान से नवाज़ा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।
3 मई 2017 को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह’ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा ‘स्वर्ण-कमल-2016’ पुरस्कार प्रकाशक वाणी प्रकाशन ग्रुप को प्रदान किया गया। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ग्रुप ने राजधानी के प्रमुख पुस्तक केन्द्र ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ सहयोग कर ‘लेखक से मिलिये’ के अन्तर्गत कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला का आयोजन किया और वर्ष 2014 से ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन सम्पन्न करता आ रहा है।
वर्ष 2017 में वाणी फ़ाउण्डेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर हिन्दी महोत्सव का आयोजन किया व वर्ष 2018 में वाणी फ़ाउण्डेशन, यू.के. हिन्दी समिति, वातायन और कृति यू. के. के सान्निध्य में हिन्दी महोत्सव ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में आयोजित किया गया ।
‘किताबों की दुनिया’ में बदलती हुई पाठक वर्ग की भूमिका और दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ग्रुप ने अपनी 51वीं वर्षगाँठ पर गैर-लाभकारी उपक्रम वाणी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की। फ़ाउण्डेशन की स्थापना के मूल प्रेरणास्त्रोत सुहृदय साहित्यानुरागी और अध्यापक स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ हैं। स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ ने वर्ष 1960 में वाणी प्रकाशन ग्रुप की स्थापना की। वाणी फ़ाउण्डेशन का लोगो विख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा द्वारा बनाया गया है। मशहूर शायर और फ़िल्मकार गुलज़ार वाणी फ़ाउण्डेशन के प्रेरणास्त्रोत हैं।
वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय और विदेशी भाषा साहित्य के बीच व्यावहारिक आदान-प्रदान के लिए एक अभिनव मंच के रूप में सेवा करता है। साथ ही वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय कला, साहित्य तथा बाल-साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोधवृत्तियाँ प्रदान करता है। वाणी फ़ाउण्डेशन का एक प्रमुख दायित्व है दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा हिन्दी को यूनेस्को भाषा सूची में शामिल कराने के लिए विश्वस्तरीय प्रयास करना।
वाणी फ़ाउण्डेशन की ओर से विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार भारतवर्ष के उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम-से-कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है। इस पुरस्कार की आवश्यकता इसलिए विशेष रूप से महसूस की जा रही थी क्योंकि वर्तमान स्थिति में दो भाषाओं के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले की स्थिति बहुत हाशिए पर है। इसका उद्देश्य एक ओर अनुवादकों को भारत के इतिहास के मध्य भाषिक और साहित्यिक सम्बन्धों के आदान-प्रदान की पहचान के लिए प्रेरित करना है, दूसरी ओर, भारत की सशक्त परम्परा को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित करना है।
वाणी फ़ाउण्डेशन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है भारतीय भाषाओं से हिन्दी व अंग्रेजी में श्रेष्ठ अनुवाद का कार्यक्रम। इसके साथ ही इस न्यास के द्वारा प्रतिवर्ष डिस्टिंगविश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड भी प्रदान किया जाता है जिसमें मानद पत्र और एक लाख रुपये की राशि अर्पित की जाती हैं। वर्ष 2018 के लिए यह सम्मान प्रतिष्ठित अनुवादक, लेखक, पर्यावरण संरक्षक तेजी ग्रोवर को दिया गया था।